स्वजलधारा
स्वजलधारा कार्यक्रम भारत सरकार द्वारा दिसंबर 2002 में ग्रामीण विकास मंत्रालय (बाद में पेयजल आपूर्ति विभाग के अधीन) के तहत शुरू किया गया था। कार्यक्रम का प्राथमिक उद्देश्य स्थानीय शासन संस्थाओं, विशेष रूप से पंचायती राज संस्थाओं (पीआरआई) को सशक्त बनाकर ग्रामीण पेयजल आपूर्ति के वितरण को विकेंद्रीकृत करना था।
इस कार्यक्रम में सामुदायिक भागीदारी पर जोर दिया गया, जिसमें ग्रामीण समुदायों को जल आपूर्ति योजनाओं की योजना, कार्यान्वयन, संचालन और रखरखाव में शामिल किया गया। इसने स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए उपयोगकर्ताओं के बीच लागत-साझाकरण और स्वामित्व की भावना को भी बढ़ावा दिया। इस कार्यक्रम के तहत राज्य में 2004-05 से 2009-10 के बीच स्वजल द्वारा 224 जल आपूर्ति योजनाओं का निर्माण किया गया।
मुख्य विशेषताएं:
- समुदाय द्वारा संचालित और मांग-उत्तरदायी दृष्टिकोण।
- ग्राम पंचायतों या ग्राम जल और स्वच्छता समितियों द्वारा कार्यान्वयन।
- समुदायों द्वारा कम से कम 10% पूंजीगत लागत साझा करना (बहु-ग्राम योजनाओं के लिए 20%)।
- समुदाय के पास 100% संचालन और रखरखाव की जिम्मेदारी।
- जल संरक्षण और स्थिरता पर जोर।
मुख्य उपलब्धियाँ:
- स्थानीय निकायों का सशक्तिकरण: जल आपूर्ति प्रबंधन में उन्हें शामिल करके ग्राम पंचायतों को मजबूत बनाया।
- सामुदायिक स्वामित्व: ग्रामीणों में जिम्मेदारी की भावना को बढ़ावा दिया, जिससे जल स्रोतों की स्थिरता में सुधार हुआ।
- सुधारित पहुँच: कई ग्रामीण बस्तियों में सुरक्षित और पर्याप्त पेयजल तक बेहतर पहुँच को सक्षम बनाया।
- विकेन्द्रीकृत शासन: राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम और जल जीवन मिशन जैसे भविष्य के कार्यक्रमों के लिए आधार तैयार किया।
- स्वजलधारा को सामुदायिक स्वामित्व और विकेंद्रीकृत शासन को बढ़ावा देने में उल्लेखनीय सफलता मिली, लेकिन जमीनी स्तर पर अपर्याप्त क्षमता और कुछ क्षेत्रों में सीमित तकनीकी विशेषज्ञता जैसी चुनौतियों ने इसके दीर्घकालिक प्रभाव को प्रभावित किया। फिर भी, इसने भारत की ग्रामीण जल आपूर्ति नीति को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
लाभार्थी:
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लाभ:
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आवेदन कैसे करें
ग्राम सभा की खुली बैठक में पारित प्रस्ताव स्वजल के जनपदीय इकाई को भेजा जाएगा।